Politics : योगी का उर्दू बोलने वालों को कठमुल्ला बताना कितना सही? संस्कृति को बदनाम करने की हो रही साजिश!

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Politics : जब सत्ता के गलियारों से भाषा पर वार होता है, तो यह सिर्फ जुबान पर नहीं, बल्कि तहज़ीब, संस्कृति और भाईचारे पर हमला होता है! यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने ऊर्दू को ‘कठमुल्लों की भाषा’ बताकर आग में घी डालने का काम किया है! क्या ऊर्दू सिर्फ एक धर्म की भाषा है? क्या इसे कठमुल्लापन से जोड़ना जायज़ है? या फिर ये बयान सिर्फ राजनीतिक ध्रुवीकरण का एक नया पैंतरा है? आज हम खोलेंगे इस बयान की सच्चाई और बताएंगे कि कैसे भाषा को हथियार बना कर नफरत की खेती की जा रही है!

जिस समय लखनऊ में योगी आदित्यनाथ उर्दू को कठमुल्लापन की भाषा से जोड़ रहे थे, उसी समय पांच सौ किलोमीटर दूर प्रधानमंत्री मोदी क़तर के अमीर को गले लगा रहे थे. विदेश नीति में प्रधानमंत्री इस्लामिक देशों से क़रीबी दिखाने की कोशिश करते हैं मगर उन्हीं की पार्टी के नेताओं के बयान ऐसी किसी भी कोशिश पर सवाल खड़ा कर देते हैं. सच वो है या सच ये है? क्या उर्दू भारत की भाषा नहीं है? क्या इस तरह से किसी भी भाषा को समाज के तानेबाने से अलग किया जा सकता है?

यूपी की राजनीति में बयानबाज़ी कोई नई बात नहीं, लेकिन जब मुख्यमंत्री खुद एक भाषा को कट्टरता से जोड़ते हैं, तो सवाल उठता है – क्या यह सिर्फ एक बयान था या फिर सियासी एजेंडा?

योगी आदित्यनाथ ने ऊर्दू को ‘कठमुल्लों की भाषा’ बताकर यह जता दिया कि भाषा भी अब धर्म के चश्मे से देखी जाएगी। लेकिन क्या उन्हें पता है कि यही ऊर्दू थी जिसने स्वतंत्रता संग्राम के नारे गढ़े? यही ऊर्दू थी जिसने हिंदुस्तान की गंगा-जमुनी तहज़ीब को सींचा?

ऊर्दू सिर्फ एक धर्म की नहीं, बल्कि इस देश की आत्मा की भाषा है! क्या उन्हें नहीं पता कि भगत सिंह से लेकर अशफाक उल्लाह खान तक, हर क्रांतिकारी के जुबान पर ऊर्दू थी? क्या उन्हें नहीं पता कि इस देश के न्यायालय से लेकर सरकारी इमारतों तक, ऊर्दू की सैकड़ों साल की विरासत दर्ज है?

अब सवाल उठता है कि इस बयान के पीछे असली मकसद क्या है? क्या ये ध्रुवीकरण का नया पैंतरा है या फिर उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी, अपराध और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों से ध्यान भटकाने का खेल?

लेकिन याद रखिए, भाषा किसी की बपौती नहीं होती, न ही इसे किसी धर्म की बेड़ियों में जकड़ा जा सकता है। ऊर्दू जितनी मुस्लिमों की है, उतनी ही हिंदुओं की भी! वरना राम प्रसाद बिस्मिल की शायरी से लेकर दुष्यंत कुमार की ग़ज़लों तक, हिंदुस्तान की धड़कनों में ऊर्दू क्यों बह रही है? इसलिए योगी भाषा पर ऐसी बात कहकर भले ही कितनी ही तालियां बटोर लें लेकिन यह राजनीति भारतीय समाज को गलत दिशा में लेकर जा रही है.

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Author: thebawal

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