Jaisalmer : देश के गांवों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पंचायती राज की नींव रखी गई थी, लेकिन जैसलमेर के गांवों में यह सपना अब सिर्फ फाइलों और घोटालों में ही सिमट कर रह गया है. ‘बवाल’ की टीम पिछले चार महीनों से ग्राउंड जीरो पर लगातार रिपोर्टिंग कर रही है और जो सच सामने आया है, वो काफी चौंकाने वाला है. एक तरफ सरकार गांवों में शहर जैसी सुविधाएं देने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ पंचायतों में करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद गांवों में बुनियादी सुविधाएं तक नहीं हैं. इस खबर में हम बात करेंगे कि अगर विकास के काम नहीं हो रहे तो आखिर पंचायतों के लिए स्वीकृत हुआ पैसा जा कहां रहा है?
अगर साल 2010 से 2025 तक की बात की जाए तो औसतन हर पंचायत का सालाना बजट 60 से 70 लाख रुपये रहा है. यानी 15 साल में एक पंचायत का कुल बजट करीब 10 करोड़ रुपये के आसपास होता है. लेकिन जब बवाल की टीम जैसलमेर की झींझियाली, जवाहर नगर, हटार, मंडाऊ, कुछडी, रीवड़ी, दरबारी का गांव, मोहनगढ़, बांकलसर, फुलासर, सदराऊ, नेहड़ाई, कठोड़ी, शास्त्री नगर, शेखासर, शेखो का तला, पांचे का तला, सिपला, कनोद, जालूवाला, लाखा, उत्तमनगर और हड्डा जैसे गांवों में पहुंची तो ज्यादातर गांवों में ज़मीन पर इसका 10% काम भी नजर नहीं आया. जब गांव के लोगों और सरपंचों से बातचीत की गई, तो यह साफ हुआ कि पंचायत में आने वाली राशि का लगभग 40% हिस्सा तो जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों की जेबों में कमीशन के तौर पर चला जाता है. बची हुई 60% राशि से न तो योजनाएं पूरी होती हैं और न ही गुणवत्तापूर्ण काम हो पाता है.
जैसलमेर के इन गांवों में हालात इतने खराब हैं कि कई जगह तो वर्षों से एक भी स्थायी विकास कार्य नहीं हुआ. सरकारी रिकॉर्ड में टांके, सड़कें, नाडियां, सामुदायिक भवन और रोजगार गारंटी योजना के तहत हुए कार्यों का जिक्र तो है लेकिन जमीन पर हकीकत में कुछ भी दिखाई नहीं देता.
मोहनगढ़ में बैठाई गई थी जांच
द बवाल की टीम ने जब इन सभी तथ्यों को सीईओ मैडम के सामने रखा तो मोहनगढ़ पंचायत पर जांच बैठाई गई. इस जांच के बाद मोहनगढ़ में 46 लाख रुपये की रिकवरी हुई. लेकिन सवाल ये है कि सिर्फ मोहनगढ़ ही क्यों? बाकी गांवों की हालत भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. हर पंचायत में लापरवाही, फर्जीवाड़ा और मिलीभगत का खेल चल रहा है. यदि प्रशासन सही मायनों में ईमानदारी से हर पंचायत की जांच कराए तो करोड़ों रुपये की रिकवरी और दर्जनों लोगों पर एक्शन लेना पड़ेगा.
मनरेगा में हो रहा जमकर भ्रष्टाचार
जैसलमेर में मनरेगा में भी जमकर घोटाला हो रहा है. पानी के संकट से जूझते जिले में यदि नाडियों की खुदाई और टांकों का निर्माण ईमानदारी से किया जाता, तो हालात काफी हद तक बदल सकते थे. लेकिन आंकड़े और जमीनी हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क है. 2010 से 2025 तक जितने टांके स्वीकृत हुए हैं, अगर वो वास्तव में बने होते तो गांवों में पांव रखने की भी जगह नहीं बचती. लेकिन यहां पर न टांके हैं, न पानी. चारों तरफ सिर्फ पेयजल संकट से जूझते लोग दिखाई देते हैं.
क्या ग्राम पंचायतें बन गई लूट का अड्डा?
अब सवाल उठता है कि क्या पंचायत सिर्फ लूट का अड्डा बनकर रह गई है? क्या गांव का विकास सिर्फ पोस्टरों और घोषणाओं तक ही सीमित रहेगा? आज जब ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्मार्ट विलेज’ की बातें हो रही हैं, तब जैसलमेर जैसे ज़िलों में लोग पीने के पानी और मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. ‘द बवाल’ की ये पड़ताल इस बात का सबूत है कि जब तक भ्रष्टाचार की जड़ें नहीं काटी जाएंगी, तब तक गांवों का विकास सिर्फ जुमला ही बनकर रह जाएगा.
