Barmer : बाड़मेर के कमलेश प्रजापति एनकाउंटर केस में जोधपुर कोर्ट ने वो कर दिखाया, जो देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी CBI तक नहीं कर पाई. कोर्ट ने साफ कह दिया ये एनकाउंटर नहीं, मर्डर था. कोर्ट ने CBI की क्लोजर रिपोर्ट को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ये जांच नहीं, लीपापोती थी. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि कोर्ट ने कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व राजस्व मंत्री हरीश चौधरी और उनके भाई मनीष चौधरी की भूमिका की जांच के आदेश भी दिए हैं. हरीश चौधरी, जो पश्चिमी राजस्थान की राजनीति के सबसे ताकतवर चेहरों में गिने जाते हैं, अब CBI की रडार पर हैं. आज के इस वीडियो में हम बात करेंगे कि कमलेश प्रजापति एनकाउंटर केस में ऐसा क्या हुआ कि कोर्ट को 24 पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश देना पड़ा.
अदालत ने अपने 32 पेज के फैसले में फर्जी एनकाउंटर को बेनकाब कर दिया है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया था कि कमलेश को चार गोलियां मारी गईं. दो सीने में, एक कंधे में और एक कमर के नीचे. कमलेश निहत्था था, उसके खिलाफ कोई बड़ा आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था. फिर भी, पुलिस ने एके-47 जैसी असॉल्ट राइफल से हमला किया. अदालत ने साफ कहा कि ये आत्मरक्षा नहीं, साजिश थी. और ये साजिश सिर्फ पुलिस की नहीं, बल्कि राजनेताओं की मिलीभगत से की गई हत्या थी.
सीबीआई ने हरीश चौधरी के भाई की भूमिका की नहीं की जांच
कमलेश की पत्नी जशोदा ने अदालत में बताया था कि हरीश चौधरी के भाई मनीष चौधरी ने 10 लाख रुपये लिए थे, ताकि एक पुराने केस से कमलेश का नाम हटाया जा सके. बाद में वही कमलेश इस कथित एनकाउंटर का शिकार बन गया. कोर्ट ने कहा कि CBI ने इस पैसे के लेन-देन, कॉल डिटेल्स और मनीष चौधरी की भूमिका की जांच ही नहीं की. इतना ही नहीं, मनीष के साले तहसीलदार प्रेमसिंह को गवाह बनाया गया. और यहीं से शक गहराया कि ये पूरा एक्शन एक सुनियोजित राजनीतिक हत्या थी.
पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज किए डिलीट
CBI ने पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की थी. क्लोजर रिपोर्ट में कहा गया कि एनकाउंटर में कोई फर्जीवाड़ा नहीं है. लेकिन कोर्ट ने साफ कहा कि CBI की जांच अधूरी, एकतरफा और पक्षपातपूर्ण थी. पुलिस ने जिस वक्त कमलेश को मार गिराया, उस समय के CCTV फुटेज डिलीट कर दिए गए. कोर्ट ने इसे साक्ष्य मिटाने की कोशिश माना और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक पाली कालूराम रावत, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक बाड़मेर आनंद शर्मा, तत्कालीन वृत्ताधिकारी सुमेरपुर रजत विश्नोई, तत्कालीन पुलिस उप अधीक्षक पुष्पेंद्र आढ़ा समेत 24 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या, आपराधिक षड्यंत्र, साक्ष्य मिटाने और अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया है.
हरीश चौधरी और उनके भाई के खिलाफ जांच के आदेश
कार्ट के आदेश में सबसे बड़ी बात ये है कि हरीश चौधरी, उनके भाई मनीष चौधरी और तत्कालीन IG एन. गोगोई की भूमिका की गहराई से जांच की जाएगी. कोर्ट ने CBI को दो महीने में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. साथ ही अभियुक्तों को तलब करने के लिए गिरफ्तारी वारंट की भी बात कही गई है. यानी अगली सुनवाई में बड़े चेहरे सलाखों के पीछे भी हो सकते हैं.
बड़े चेहरे जा सकते हैं सलाखों के पीछे
कमलेश प्रजापति की मौत अब महज एक फर्जी एनकाउंटर केस नहीं रहा. ये एक मिसाल बन चुकी है कि अगर न्यायपालिका जाग जाए, तो सत्ता, वर्दी और रसूख सबको झुकना पड़ता है. हरीश चौधरी जैसे बड़े नेता की जांच, सीबीआई की फजीहत और कोर्ट के फैसले ने साबित कर दिया कि अब सच्चाई को लंबे वक्त तक दबाया नहीं जा सकता. ये फैसला न सिर्फ कमलेश के परिवार की, बल्कि पूरे प्रदेश की न्याय व्यवस्था की जीत है.
