Barmer : देश में जब हमारे जवान आतंकियों से मोर्चा ले रहे हैं, ठीक उसी समय कुछ लोग सोशल मीडिया पर बैठकर उन्हीं आतंकियों की भाषा बोल रहे हैं. ऐसा ही एक मामला बाड़मेर में सामने आया है जहां जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को ‘प्रोपेगेंडा’ बताने वाले सरकारी स्कूल के टीचर को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया है. इस खबर में बात करेंगे कि धर्म के नाम पर जहर घोलने वाले ऐसे लोगों की सोच आखिर कब बदलेगी?
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई थी. देश गुस्से और सदमे में है. लेकिन इस राष्ट्रीय शोक के बीच एक सरकारी शिक्षक ने ऐसी घटिया हरकत कर दी, जिससे पूरे देश में आक्रोश फैल गया. राजस्थान के बाड़मेर जिले में एक सरकारी स्कूल के टीचर जसवंत डाभी ने वॉट्सऐप स्टेटस में इस हमले को “प्रोपेगेंडा” करार दिया. यही नहीं, उसने यह भी लिखा कि अगर हमले धर्म देखकर होते, तो आदिल जिंदा होता.
स्टेटस देखकर लोगों का फूटा गुस्सा
जैसे ही जसवंत डाभी का स्टेटस सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, लोगों का गुस्सा फूट पड़ा. ट्विटर, फेसबुक और वॉट्सऐप ग्रुप्स पर उसकी पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर होता गया, और साथ ही कार्रवाई की मांग भी उठी. लोग पूछने लगे कि एक सरकारी कर्मचारी, जो बच्चों को शिक्षा देने का काम करता है, वह कैसे देश की सुरक्षा एजेंसियों, मीडिया और सरकार के खिलाफ इतनी घिनौनी टिप्पणी कर सकता है?
पुलिस ने लिया सख्त एक्शन
सोशल मीडिया पर हंगामा होते ही पुलिस हरकत में आई. 25 अप्रैल को बाड़मेर पुलिस ने जसवंत डाभी को गिरफ्तार कर लिया. गुड़ामालानी थाना अधिकारी देवीचंद ढाका ने बताया है कि टीचर से पूछताछ की जा रही है और मामले की गंभीरता को देखते हुए कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. खुद बाड़मेर एसपी नरेंद्र सिंह मीणा और जोधपुर रेंज के आईजी विकास कुमार पहले ही सोशल मीडिया पर कड़ी नजर रखने के निर्देश दे चुके है. अब शिक्षा विभाग ने भी इस मामले को गंभीरता से लिया है. पायला कला ब्लॉक के CBEO ईश्वर जाखड़ ने बताया कि पंचायत एलीमेंट्री एजुकेशन ऑफिसर करनाराम को जांच कर रिपोर्ट सौंपने के आदेश दिए गए हैं. रिपोर्ट के आधार पर उच्च अधिकारियों को अवगत कराया जाएगा और संभवतः टीचर के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी होगी.
सवाल ये है कि क्या ऐसे लोगों को शिक्षण जैसे संवेदनशील पेशे में रहने का हक है? कुछ लोग इसे विचारों की आजादी कह सकते हैं, लेकिन जब एक सरकारी कर्मचारी, जो बच्चों का मार्गदर्शन करता है, वही आतंकी हमले को फर्जी करार दे और धर्म के नाम पर समाज को बाँटने की कोशिश करे तो क्या यह देशद्रोह नहीं? यह मामला केवल एक स्टेटस का नहीं है. यह उस जहरीली सोच का उदाहरण है, जो देश की जड़ों को खोखला करने में लगी है. ऐसे कितने जसवंत डाभी और छुपे हुए एजेंडे वाले लोग आज भी सिस्टम का हिस्सा बने हुए हैं? वक्त आ गया है कि ऐसे चेहरे बेनकाब हों और उन्हें सख्त सज़ा मिले. ताकि देश के दुश्मनों को ये साफ संदेश जाए कि भारत में गद्दारी की कोई जगह नहीं है.
