Rajasthan : भारत में पहली बार केंद्र सरकार ने पूरे देश में जातिगत जनगणना कराने का ऐतिहासिक फैसला लिया है. इस फैसले का राजस्थान की राजनीति पर भी दूरगामी असर पड़ेगा. क्योंकि यहां के हर चुनाव, हर आंदोलन, हर नीतिगत फैसले के पीछे जातीय गणित सबसे बड़ा फैक्टर रहता है. इस खबर में हम जानेंगे कि जातिगत जनगणना से राजस्थान में किसे सबसे ज्यादा फायदा होगा और क्या इसकी वजह से बीजेपी-कांग्रेस को अपनी रणनीति को पूरी तरह से बदलना पड़ेगा?
30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने कैबिनेट बैठक में पूरे देश में जातिगत जनगणना को मंजूरी दे दी. विपक्ष इस फैसले की मांग लंबे समय से कर रहा था, खासतौर पर कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों ने इसे अपनी प्राथमिकता में बना रखा था. अब जातिगत जनगणना के आंकड़े सामाजिक न्याय की लड़ाई का औजार बनकर उभरेंगे. खासकर राजस्थान की राजनीति लंबे समय से जाट, गुर्जर, मीणा, मेघवाल व बिश्नोई जैसे समुदायों की मांगों के इर्द-गिर्द घूमती रही है.
जातिगत जनगणना से बदलेंगे राजनीतिक समीकरण
जातिगत जनगणना से इन समुदायों की वास्तविक जनसंख्या सामने आएगी, और तब सवाल उठेगा कि कौन कितना पिछड़ा है? किसे कितना आरक्षण मिलना चाहिए? गुर्जर आंदोलन हो या जाटों का आंदोलन, इनकी नींव में जनसंख्या और प्रतिनिधित्व की बहस ही रही है. अब इन समुदायों के पास ठोस डाटा होगा. और अब इन आंदोलनों की आवाज केवल सड़क तक नहीं, बल्कि संसद तक गूंज सकती है.
राजस्थान में आरक्षण पहले से ही 50% की संवैधानिक सीमा को पार कर चुका है. जातिगत जनगणना के बाद अगर यह सामने आता है कि कोई समुदाय बहुसंख्यक है लेकिन प्रतिनिधित्व में पीछे है, तो आरक्षण को लेकर EWS और OBC उपवर्गीकरण जैसे मुद्दे और तेज़ हो सकते हैं. ये बहस सिर्फ आरक्षण तक सीमित नहीं रहेगी, यह सरकारी योजनाओं, नौकरियों, बजट आवंटन और पंचायत स्तर तक बदलाव की मांग करेगी. यह एक नया सामाजिक समीकरण रचेगा, जो राजनीतिक दलों की पारंपरिक रणनीति को पूरी तरह उलट सकता है.
बीजेपी-कांग्रेस को बदलनी पड़ेगी अपनी रणनीति
जातिगत जनगणना के बाद राजस्थान की दोनों प्रमुख पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपनी रणनीति बदलने को मजबूर होंगी. बीजेपी जहां अब तक सवर्ण वोटबैंक पर फोकस करती रही, अब वह ओबीसी और दलित वर्ग में पैठ बनाने की कोशिश करेगी. वहीं कांग्रेस, जो जातिगत न्याय और 50% की आरक्षण सीमा की दीवार तोड़ने की बात कर रही है, वो इन आंकड़ों के आधार पर योजनाएं और घोषणाएं बनाएगी. इसके साथ ही माली, गुर्जर, बिश्नोई, सैनी जैसे समुदायों से नए स्वतंत्र नेताओं का उभार भी देखने को मिल सकता है.
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इसे प्रधानमंत्री मोदी का दूरदर्शी और ऐतिहासिक फैसला बताया है. उनका आरोप है कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए कभी भी जातिगत जनगणना को समर्थन नहीं दिया, और विपक्ष में रहकर भी सिर्फ राजनीति की. दूसरी तरफ, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इसे राहुल गांधी की जीत बताते हुए कहा कि जाति जनगणना न्याय दिलाएगी, और कांग्रेस 50% की आरक्षण सीमा को तोड़ेगी.
नई राजनीति की नींव रखी जा चुकी है. जातिगत जनगणना के बाद विभिन्न समुदायों के आंदोलन तेज़ होंगे, जातीय संगठनों की सक्रियता बढ़ेगी, और हर दल को चुनाव जीतने के फॉर्मूले फिर से बनाने होंगे. अब जातिगत आंकड़े सिर्फ कागजों पर ही नहीं रहेंगे, वे विधानसभाओं, लोकसभा और पंचायत चुनावों पर भी असर डालेंगे. अब देखना ये है कि राजनीतिक दल इन आंकड़ों से न्याय करते हैं या सिर्फ यह एक सियासी चाल बनकर रह जाएगा.
