Rajasthan : राजस्थान की सियासत में एक बार फिर बवाल मच गया है. अलवर के राममंदिर में कांग्रेस नेता के दर्शन करने के बाद गंगाजल छिड़कने वाले चर्चित नेता ज्ञानदेव आहूजा को बीजेपी ने पार्टी से निकाल दिया है. धर्म के नाम पर सस्ती राजनीति करने की कोशिश इस बार उन्हें भारी पड़ गई. अब एक तरफ ज्ञानदेव आहूजा इस पूरे विवाद पर सफाई दे रहे हैं वहीं कांग्रेस ने भी उनके खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. इस खबर में हम बात करेंगे कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी को अपने चर्चित नेता को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा?
पूरा विवाद 6 अप्रैल को रामनवमी के दिन अलवर जिले की एक आवासीय कॉलोनी के राम मंदिर से शुरू हुआ. मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का आयोजन था, जहां नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी पहुंचे थे. अगले ही दिन भाजपा के पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा ने आरोप लगाया कि राम के अस्तित्व पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस के नेता इस समारोह में शामिल हुए, जिससे मंदिर “अपवित्र” हो गया. इसके बाद आहूजा ने गंगाजल छिड़ककर मंदिर का कथित शुद्धिकरण किया जिस पर बवाल मच गया. कांग्रेस ने इसे दलितों के अपमान से जोड़ दिया. मामला तूल पकड़ता देख भाजपा ने 8 अप्रैल को ज्ञानदेव आहूजा को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया.
ज्ञानदेव आहूजा ने बाद में दी थी सफाई
जैसे-जैसे बवाल बढ़ा, वैसे-वैसे ज्ञानदेव आहूजा की घबराहट भी सामने आने लगी. विवाद के बीच उन्होंने यूटर्न लेते हुए एक वीडियो जारी किया. आहूजा ने कहा कि उनका बयान किसी दलित के खिलाफ नहीं था. उलटे उन्होंने खुद को दलितों का “सबसे बड़ा समर्थक” बताते हुए कहा कि उन्होंने मेवात में दलित लड़कियों को मुक्त करवाया था जिनको मेव लड़के भगा ले गए थे. उन्होंने यह भी कहा कि वह तो खुद टीकाराम जूली के जन्मदिन पर बधाई देने गए थे. लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे को भाजपा के खिलाफ बड़ा हथियार बना लिया और इसे दलितों के खिलाफ घृणा करार दिया. कांग्रेस ने कई जिलों में इस मामले को लेकर ज्ञानदेव आहूजा का पुतला भी फूंका और पूरे प्रदेश में भाजपा को घेरना शुरू कर दिया. भाजपा के लिए यह मामला गले की फांस बन गया. इसलिए बीजेपी ने आहूजा के बयान से दूरी बना ली और उनके खिलाफ सख्त ऐक्शन लिया. विस्तृत जांच के बाद बीजेपी ने 27 अप्रैल को ज्ञानदेव आहूजा को पार्टी से निकाल दिया.
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या क्या ज्ञानदेव आहूजा का यह सियासी पाखंड सिर्फ उनके करियर का अंत करेगा, या भाजपा को भी इसकी बड़ी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ेगी? राम मंदिर जैसी आस्था की भावना को सस्ती राजनीति के लिए इस्तेमाल करना अब नेताओं को महंगा पड़ सकता है. दलित समाज का गुस्सा अगर भड़का, तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है.
