Politics : आधी रात का वक्त… जब देश सो रहा था, तब मोदी सरकार का बड़ा खेल चल रहा था! चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त की ताजपोशी ऐसे वक्त में हुई, जब जनता को इसकी भनक तक नहीं लगी! क्या ये इत्तेफाक था या सोची-समझी साजिश? क्या चुनाव आयोग को सरकार की कठपुतली बनाने की कोशिश की गई? सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही चुनाव आयोग की नियुक्ति को पारदर्शी बनाने के लिए कड़ा रुख अपनाया था, लेकिन मोदी सरकार ने इसकी धज्जियां उड़ा दीं! अब सवाल ये है कि सरकार इतनी जल्दी में क्यों थी? क्या मोदी सरकार चुनाव आयोग को अपनी जेब में डालने की कोशिश कर रही है? आइए जानते हैं.
दरअसल, पीएमओ में सोमवार रात को एक मीटिंग हुई जिसमें पीएम नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री और विपक्ष के नेता शामिल हुए. इस मीटिंग में नए CEC के लिए 5 नामों की सूची दी गई थी, लेकिन राहुल गांधी ने नामों पर विचार करने से इनकार कर दिया. राहुल गांधी ने इस पर आपत्ति जताई और वह मीटिंग से निकल गए. राहुल गांधी ने मीटिंग में जो असहमति पत्र सौंपा उसमें बताया था कि 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की समिति करे. लेकिन सरकार ने अगस्त 2023 में कानून बनाया और समिति में से सीजेआई को हटा दिया. इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई जिस पर 19 फरवरी को सुनवाई होनी है.
राहुल गांधी का कहना था कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी नहीं होती तब तक नए सीईसी को ना चुना जाए. इसके बावजूद नए कानून के तहत ज्ञानेश कुमार को नया मुख्य चुनाव आयुक्त बना दिया गया और उन्होंने पदभार भी संभाल लिया है.
ज्ञानेश कुमार पर मोदी सरकार ने इसलिए जताया भरोसा
आखिर मोदी सरकार ने ज्ञानेश कुमार पर ये भरोसा क्यों जताया और विपक्ष उनके नाम का विरोध क्यों कर रहा है.आइए जानते हैं. ज्ञानेश कुमार 1988 बैच के IAS अधिकारी हैं. वह मोदी सरकार में बेहद भरोसेमंद अधिकारी रहे हैं. इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राम मंदिर से लेकर कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने में उनकी अहम भूमिका रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय में वह मई 2022 से सेक्रेटरी थे. इसके दो महीने बाद 14 मार्च, 2024 को इन्हें चुनाव आयुक्त बना दिया गया.15 मार्च को उन्होंने कार्यभार संभाला और उसके अगले दिन ही चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा कर दी. चुनाव आयुक्त का पद संभालने के लगभग एक साल बाद ही वो अब मुख्य चुनाव आयुक्त की ज़िम्मेदारी संभालने जा रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर में निभाई अहम भूमिका
ज्ञानेश कुमार ने इससे पहले पांच साल गृह मंत्रालय में काम किया था, जहां वह मई 2016 से सितंबर 2018 तक संयुक्त सचिव और उसके बाद सितंबर 2018 से अप्रैल 2021 तक अतिरिक्त सचिव के पद पर रहे. अतिरिक्त सचिव के पद पर रहते हुए ज्ञानेश कुमार जम्मू-कश्मीर के मामलों को देख रहे थे और अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को रद्द करने की घोषणा की गई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अनुच्छेद 370 को रद्द करने का क़ानून जब लाया जा रहा था उस समय वह गृह मंत्री अमित शाह के साथ लगातार संसद में आते थे. नरेंद्र मोदी सरकार का ज्ञानेश कुमार में एक नौकरशाह के तौर पर भरोसा इस तथ्य से भी पता चलता है कि न केवल उन्हें गोपनीय विधेयकों में से एक जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक को तैयार करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी बल्कि वह राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के गठन में भी शामिल थे. ज्ञानेश कुमार के चुनाव आयुक्त रहते हुए लोकसभा चुनाव 2024 और साथ ही अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. इसके अलावा हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए.
नए कानून के तहत 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो सकती है. अब यह देखने वाली बात होगी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला मोदी सरकार के पक्ष में आता है या विरोध में.
