Bengal : पश्चिम बंगाल में अगले साल मार्च-अप्रैल में विधानसभा चुनाव होंगे. लेकिन टीएमसी, बीजेपी समेत तमाम पार्टियों ने चुनाव जीतने के लिए अभी से स्ट्रैटजी बनाना शुरू कर दिया है. एक तरफ भगवा ब्रिगेड पूरी ताकत से मैदान में है, तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी की TMC हर चाल को काटने में जुटी है. आज की इस रिपोर्ट में हम बात करेंगे कि क्या हिंदू वोटों की गोलबंदी से भाजपा बंगाल का किला फतह कर पाएगी? क्या संघ की एंट्री बंगाल की राजनीति को पूरी तरह बदलकर रख देगी. आइए जानते हैं.
2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 213 और बीजेपी को 77 सीटें मिली थीं. 2021 के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा को 50% हिंदू और सिर्फ 7% मुस्लिम वोट मिले थे, जबकि TMC को 75% मुस्लिम और 39% हिंदू वोट मिले थे. इसका मतलब साफ है कि अगर भाजपा हिंदुओं को एकमुश्त वोटिंग के लिए तैयार कर दे, तो TMC का पूरा गणित बिगड़ सकता है. इसी एजेंडे को लागू करने के लिए भाजपा रामनवमी और हनुमान जयंती जैसे धार्मिक आयोजनों को सियासी मंच बना रही है.
बीजेपी नेता दिलीप घोष तो यहां तक कह चुके हैं कि रामनवमी ने ही बंगाल में भाजपा को ज़ीरो से 77 सीटों तक पहुंचाया है. यही वजह है कि हाल ही में रामनवमी और हनुमान जयंती के दौरान जो दृश्य बंगाल की सड़कों पर दिखा, ऐसा पहले कभी नहीं दिखा था. अब इस हिंदूवादी एजेंडे को 2026 तक बनाए रखना ही भाजपा की सबसे बड़ी रणनीति है.
भागवत के दौरे ने दी बीजेपी के एजेंडे को दिशा
फरवरी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बंगाल का दौरा किया था और उनका यह दौरा 2026 के मिशन का ट्रिगर था. 10 दिन के अपने इस दौरे में उन्होंने बंगाल के सबसे एक्टिव जिलों में स्वयंसेवकों से मुलाकात की, शाखाओं का जायजा लिया और हिंदू समाज को संगठित करने की खुली अपील की. इसके बाद संघ ने भाजपा नेताओं के साथ बैठक की और यह बात स्पष्ट कर दी कि अबकी बार बंगाल में हिंदू एजेंडा खुलेआम चलेगा. बंगाल में संघ की शाखाएं पिछले दो साल में 3 हजार 560 से बढ़कर 4 हजार 540 हो चुकी हैं. यह बताता है कि जमीन पर संघ कितना एक्टिव है और 2026 में भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने के लिए कितना आक्रामक होकर काम कर रहा है.
टीएमसी की चाल खुद के ऊपर ही पड़ गई उल्टी?
दूसरी तरफ, ममता बनर्जी धर्मनिरपेक्षता का राग अलाप रही हैं. उन्हें डर है कि अगर हिंदू त्योहारों को नजरअंदाज किया तो भाजपा उन पर हिंदू विरोधी का टैग लगा देगी. और अगर हिंदू रैलियों का समर्थन किया तो मुस्लिम वोट खिसक सकते हैं. यही वजह है कि इस बार TMC ने भी रामनवमी पर रैलियां निकालीं लेकिन उसकी यह चाल उलटी पड़ गई. मुस्लिम वोटर्स में नाराजगी दिखी और भाजपा ने इसे ममता का ‘फेक हिंदुत्व’ करार दिया. इससे टीएमसी को चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है.
महिला वोटर पर है भाजपा का फोकस
भाजपा और संघ जानते हैं कि चुनाव में महिला वोट एक बड़ा फैक्टर है. इसलिए RSS की महिला विंग राष्ट्रीय सेविका समिति अब योग के जरिए महिलाओं तक अपनी पहुंच बना रही है. 1 और 2 मार्च को हुई RSS और भाजपा की बैठक में महिला सुरक्षा को बड़ा मुद्दा बनाया गया. यानी 2026 में महिलाएं बीजेपी और टीएमसी का भविष्य तय करने में बड़ी भूमिका निभाएंगी.
2026 का चुनाव जीतना टीएमसी के लिए आसान नहीं
टीएमसी के लिए 2026 में बंगाल चुनाव जीतना आसान नहीं है. एक तरफ शिक्षक भर्ती घोटाले में सुप्रीम कोर्ट का करारा फैसला, दूसरी तरफ वक्फ बोर्ड कानून पर बवाल और हिंसा, जिसमें हिंदू समुदाय के लोग मारे गए. भाजपा इसे ममता की हिंदू विरोधी नीतियों का परिणाम बता रही है. हिंसा के हर वीडियो को भाजपा तेजी से सोशल मीडिया पर फैलाकर यह नैरेटिव बना रही है कि ममता बनर्जी हिंदुओं की रक्षा नहीं कर पा रही है. यानी 2026 का चुनाव सिर्फ TMC बनाम भाजपा नहीं होगा, बल्कि यह चुनाव हिंदू अस्मिता बनाम मुस्लिम तुष्टीकरण के नैरेटिव पर लड़ा जाएगा.
दूसरी तरफ कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाजपा के पास टीएमसी के क्षेत्रीयवाद वाले एजेंडे का मुकाबला करने का कोई तोड़ नहीं है. न ही उसके पास कोई बड़ा बंगाली चेहरा है, जिसकी बदौलत चुनाव जीता जा सके. हिंदूवादी विचारधारा ही भाजपा का सबसे बड़ा हथियार है, लेकिन इससे चुनाव में कितना फायदा मिलेगा, यह कहना मुश्किल है. अब देखना ये है कि क्या ममता बनर्जी इस भगवा सुनामी को थाम पाएंगी या फिर बंगाल भी भगवा रंग में रंग जाएगा?
