Motivational Story : एक लड़का, जो तपती धूप में सिर पर गांधी टोपी और पैरों में धनगढ़ी चप्पलें पहनकर बकरियां चराता था. जिसकी मां अनपढ़ है, पिता बकरियां चराते हैं. वही लड़का जब आईपीएस बनकर गांव लौटा तो सब लोग हैरान रह गए. किसी को भी इस युवक के आईपीएस ऑफिसर बनने पर यकीन नहीं हो रहा था. आप भी जब महाराष्ट्र के कोल्हापुर के यमगे गांव में रहने वाले बिरुदेव सिद्धाप्पा ढोणे की कहानी जानोगे तो चौंक जाओगे. ये कहानी है संघर्ष की… यह कहानी है जुनून की… और यह कहानी है उस पल की, जब एक मोबाइल चोरी की FIR न लिखे जाने पर इस युवक ने ठान लिया कि अब मैं खुद आईपीएस ऑफिसर बनूंगा.
बिरुदेव सिद्धाप्पा ढोणे का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था. धनगढ़ जनजाति से ताल्लुक रखने वाले इस परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना भी आसान नहीं था. पिता सिद्धापा ढोणे ने बकरियां चराकर ही अपने परिवार को पालने का काम किया. लेकिन इसी कठिन ज़िंदगी ने बिरुदेव को मजबूत बना दिया. दिन में खेतों में काम और बकरियां चराना फिर उसके बाद रात में पढ़ाई. यही था उसका रूटीन. कभी बिजली नहीं तो कभी किताबें नहीं, लेकिन उसका हौसला कभी नहीं टूटा.
मोबाइल गुम हुआ तो नहीं लिखी गई एफआईआर
बात उस दिन की है, जब बिरुदेव का मोबाइल फोन चोरी हो गया और वह रिपोर्ट दर्ज कराने थाने पहुंचा. लेकिन वहां उसका मज़ाक उड़ाया गया, एफआईआर तक नहीं लिखी गई. वहीं खड़े-खड़े इस युवक ने ठान लिया कि जब सिस्टम मदद नहीं करता, तो खुद सिस्टम का हिस्सा बनना पड़ेगा. उसी दिन उसने कसम खाई कि अब आईपीएस ऑफिसर बनकर दिखाऊंगा. और यहीं से शुरू हुआ एक ऐसा सफर जो लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गया.
बिरुदेव की शिक्षा की शुरुआत अपने गांव के स्कूल से हुई. दसवीं और बारहवीं की परीक्षा उसने कागल तहसील के मुरगुड सेंटर से अव्वल नंबरों में पास की. इसके बाद वह पुणे के सिओईपी इंजीनियरिंग कॉलेज में बीटेक करने पहुंचा. लेकिन यूपीएससी का सपना उसके दिल में घर कर चुका था. इंजीनियरिंग खत्म करने के बाद उसने दिल्ली में रहकर UPSC की तैयारी शुरू की. मुश्किलें कम नहीं थीं, जेब में सीमित पैसे और सिर पर बड़ा सपना. पिता हर महीने 10-12 हजार रुपये बड़ी मुश्किल से भेजते, लेकिन बिरुदेव ने कभी शिकायत नहीं की.
एक दिन में 22 घंटे तक पढ़ाई करता था बिरुदेव
बिरुदेव की तैयारी कोई साधारण नहीं थी. कई बार तो ऐसा होता कि वह दिन में 22 घंटे तक पढ़ाई करता. उसका कहना है कि जब नींद आती थी तो यही सोचता था कि अगर मैं हार गया, तो वो सब लोग सही साबित हो जाएंगे जो मुझे कमज़ोर समझते थे. और आखिरकार, 2024 की UPSC परीक्षा में पहले ही प्रयास में उसने 551वीं रैंक हासिल की. जिस लड़के की मोबाइल की एफआईआर तक नहीं लिखी गई थी, वो अब खुद आईपीएस अधिकारी बन गया है.
जब रिजल्ट आया तो गांव में बैंड-बाजे नहीं थे, लेकिन आंखों में खुशी के आंसू थे. अनपढ़ मां-बाप को बस इतना ही समझ आया कि अब उनका बेटा “साहब” बन गया है. बिरुदेव न सिर्फ अपने गांव, बल्कि पूरी तहसील से यूपीएससी क्रैक करने वाला पहला छात्र है. आज वह सिर्फ एक अधिकारी नहीं, बल्कि हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है.
बिरुदेव का सपना अब सिर्फ अपने करियर तक सीमित नहीं रहा. वह चाहता है कि वह उस व्यवस्था को बेहतर बनाए, जिसने कभी उसकी बात नहीं सुनी थी. अब वह एक जिम्मेदार आईपीएस बनकर कानून का सही इस्तेमाल करना चाहता है. उसका कहना है कि मैं हर उस बच्चे के लिए काम करना चाहता हूं, जिसे समाज ने कमज़ोर समझा है. ये कहानी सिर्फ एक लड़के की नहीं, ये कहानी है उस आग की, जो तब जलती है जब कोई कहता है तू इसे नहीं कर सकता.
