Politics : राजस्थान के जैसलमेर में एक प्रशासनिक बैठक ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया है. केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की अध्यक्षता में आयोजित हुई दिशा समिति की बैठक अब राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का अड्डा बन गई है. इस बैठक को लेकर कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने न सिर्फ कड़ा विरोध जताया, बल्कि सीधे जैसलमेर कलेक्टर प्रताप सिंह नाथावत पर गंभीर आरोप जड़ दिए. सांसद का आरोप है कि कलेक्टर सरकारी अफसर नहीं, बल्कि बीजेपी के प्रवक्ता की तरह काम कर रहे हैं. इस खबर में हम बात करेंगे कि क्या जिला प्रशासन वाकई पक्षपाती हो गया है? या फिर ये कांग्रेस की तरफ से एक और राजनीतिक स्टंट है?
कांग्रेस सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल ने अपने एक्स हैंडल पर पोस्ट में लिखा कि मैं इस समय संसद की रेलवे स्थायी समिति के दौरे पर हूं. मैंने कलेक्टर को पहले ही सूचित कर दिया था कि मेरी अनुपस्थिति में बैठक ना करें, लेकिन फिर भी उन्होंने जोधपुर सांसद के दबाव में बैठक कर डाली. बेनीवाल ने आरोप लगाया कि कलेक्टर ने जानबूझकर सांसद को नजरअंदाज किया और बीजेपी के कहने पर काम किया.
गजेंद्र सिंह शेखावत ने किया पलटवार
दूसरी तरफ केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने भी इन आरोपों पर जवाब देने में देरी नहीं की. उन्होंने बेनीवाल पर तंज कसते हुए कहा कि बैठक की सूचना 21 दिन पहले भेजी गई थी और 15 दिन पहले नोटिस भेजा गया था, जो नियमानुसार है. सांसद साहब 15 दिन तक नोटिस अपनी जेब में रखे घूमते रहे और अब अचानक ट्वीट कर बवाल कर रहे हैं. शेखावत ने बेनीवाल पर तंज कसते हुए आगे कहा कि वो कांग्रेस में नए-नए आए हैं, अब उसकी पाठशाला में पढ़ रहे हैं. ये कांग्रेस की आदत है कि पहले खुद गलती करे और फिर हल्ला मचाए.
बेनीवाल ने शेयर की जिला परिषद सीईओ की चिट्ठी
शेखावत के पलटवार के बाद मामला और गर्मा गया. क्योंकि उम्मेदाराम बेनीवाल भी खाली हाथ नहीं थे. उन्होंने एक और पोस्ट करते हुए जैसलमेर जिला परिषद का एक पत्र शेयर कर दिया. इस पत्र में जिला परिषद की सीईओ ने केंद्रीय मंत्री शेखावत को 15 अप्रैल 2025 को लिखित में सूचित किया था कि सांसद बेनीवाल बैठक में नहीं आ पाएंगे क्योंकि वो संसद की रेलवे स्थायी समिति के दौरे पर हैं. पत्र का हवाला देते हुए बेनीवाल ने सवाल दागा कि जब आपको पहले ही जानकारी दे दी गई थी, तो मीडिया में झूठ क्यों बोला. उन्होंने ये भी कहा अब यह मत कहिएगा कि आपको पत्र मिला ही नहीं था.
क्या राजनीतिक दबाव में है जिला प्रशासन?
इस पूरे विवाद में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या जिला प्रशासन वास्तव में राजनीतिक दबाव में काम कर रहा है? दिशा समिति जैसी अहम बैठक में यदि स्थानीय सांसद की सहमति को नजरअंदाज किया गया, तो क्या ये लोकतंत्र की अवहेलना नहीं है? वहीं, अगर वाकई सांसद को पहले से सूचना दी गई थी और उन्होंने कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया तो क्या अब हंगामा मचाना एक राजनीतिक नौटंकी है? ये टकराव सिर्फ बेनीवाल बनाम शेखावत नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक मंचों को राजनीतिक जंग का मैदान बना दिया गया है.
राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात हैं, लेकिन जब एक सांसद और एक केंद्रीय मंत्री खुले मंच पर एक-दूसरे को झूठा ठहराएं, तो इससे आम जनता का विश्वास डगमगाने लगता है. दिशा समिति का मकसद विकास योजनाओं की निगरानी है, न कि पार्टी विशेष के प्रचार का मंच. लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि दिशा बैठक ‘दिशा’ से भटक गई है. अब देखना ये है कि प्रशासन इस पूरे विवाद पर क्या रुख अपनाता है और क्या भविष्य में ऐसी बैठकों में राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर काम किया जाएगा.
