Jaisalmer : जिस समाज ने कभी ज्ञान, विज्ञान और शोध के क्षेत्र में पूरी दुनिया का नेतृत्व किया था, वह आज पिछड़ेपन का शिकार क्यों बना हुआ है? क्या इसके पीछे सिर्फ आर्थिक कारण हैं, या फिर इसके लिए वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो खुद को इस समाज का रहनुमा कहते हैं?
पिछले दिनों आपने देखा होगा कि शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने अपने भाई रणवीर की शादी में फिजूलखर्ची करने की बजाय राजपूत समाज के हॉस्टल के लिए 22 लाख रुपये देकर सबका दिल जीत लिया था. जोधपुर के शेरगढ़ से विधायक बाबूसिंह ने भी ऐसी ही पहल की थी. उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल होने वाले 11 लाख रुपये को समाज के छात्रावास और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए खर्च कर दिए.
एजुकेशन में इसलिए पिछड़ गया मुस्लिम समाज?
इधर जैसलमेर में भी ऐसी ही एक पहल की है पूर्व विधायक रूपाराम धनदेव ने. उन्होंने अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त नवनिर्मित मेघवाल समाज लाइब्रेरी का उद्घाटन किया. इस कार्यक्रम में कई भामाशाओं ने भी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए घोषणाएं की. इससे न केवल समाज में शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि समाज की बेटियां भी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित होगी.
लेकिन दुख की बात ये है कि जैसलमेर में बाकी समाजों में तो शिक्षा के प्रति रुझान बढ़ता हुआ दिख रहा है लेकिन मुस्लिम समाज में अभी तक शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं आ पाई है. ये दोष आम जनता का नहीं है क्योंकि मुस्लिम समाज के लीडर सक्षम होते हुए भी समाज में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने में विफल रहे हैं. मुस्लिम समाज में आधुनिकता शादियों में तो आ गई और शादियों में बढ़-चढ़कर पैसा भी बहाया जाने लगा लेकिन ये ट्रेंड एजुकेशन में नहीं आ पाया.
जब दुनिया ज्ञान और विज्ञान की दौड़ में आगे बढ़ रही है, तब मुस्लिम समाज के कई हिस्से अब भी शिक्षा की बुनियादी रोशनी से वंचित हैं. लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? सरकारें, व्यवस्था, या फिर खुद मुस्लिम समाज के वे नेता जो हर मुद्दे पर राजनीति तो करते हैं, मगर शिक्षा के सवाल पर चुप्पी साध लेते हैं? जैसलमेर में भी मुस्लिम समाज के कई बड़े नेता हैं जिन्हें समाज के लोग सर आंखों पर बैठाकर रखते हैं. इसके बावजूद जैसलमेर में मुस्लिम समाज के हुसैन फकीर, सालेह मोहम्मद और जानब खां जैसे बड़े नेता समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने के प्रति बिल्कुल भी सजग नहीं हैं.
जैसलमेर में मीणा समाज की आबादी न के बराबर है. केवल मीणा समाज के लोग सरकारी सेवा में काम करते हुए देखे जाते हैं. लेकिन जब 2017-18 में IAS कैलाश चंद मीणा जैसलमेर में कलेक्टर बनकर आए तब उन्होंने मीणा समाज की मीटिंग के लिए भवन बनाने के लिए 2 बीघा जमीन अलॉट की थी. हर 6 महीने में इनकी एक समीक्षा मीटिंग होती है. 23 फरवरी को भी ऐसी ही एक मीटिंग हुई जिसमें मीणा समाज के सारे अधिकारी मौजूद रहे और अपने समाज में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए मंथन किया. लेकिन मुस्लिम समाज इस चीज से भी पिछड़ा हुआ है और मुस्लिम समाज में शिक्षा को लेकर कभी कोई ऐसी मीटिंग होती हुई नजर नहीं आती. अब वक्त आ गया है कि इन सवालों से बचने के बजाय, इनका जवाब मांगा जाए! अगर मुस्लिम समाज को आगे बढ़ना है, तो उसके नेता सिर्फ भाषणबाज़ी और सियासत से आगे निकलकर शिक्षा के क्षेत्र में ठोस पहल क्यों नहीं करते? यह चुप्पी तोड़नी होगी, वरना आने वाली पीढ़ियां भी इसी अंधेरे में भटकती रहेंगी!
